Friday, 9 August 2019

श्री गुरू कृपा ; प्यारी जू

-------------------श्री गुरू कृपा-----------------
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श्री गुरू तत्वं प्रणाम्य्हम:।
( श्री गुरू तत्व को मेरा प्रणाम है,तत्व इसीलिए क्योकि गुरू किसी देह,समाज अथवा पंथ का नाम नही अतऐव सम्पूर्ण गुरू तत्व को ही मेरा प्रणाम है।)

परा जड: चेतन: , परा विद्यऽविद्ययै।
मति-गति मन: परै , भवादिरोग: निर्बाध्याम:।।
श्री गुरू तत्वं प्रणाम्य्हम:।
(जड एवं चेतन से परे,विद्या और अविद्या से परे,मन एवं बुद्धि की गती से परे एवं भव आदि रोगो की बाधा से भी जो रहित है,ऐसे श्री गुरू तत्व को मेरा प्रणाम है)

सत्यं मूलं आन्नदित: , निजतानिजं दूरस्थितै।
नेम: तत्सुखम् एक: ,अन्य विधिनियम निषेध्याम:।।
श्री गुरू तत्वं प्रणाम्य्हम:।
(जो वास्तविक आनंद के मूल एवं निज निजता से भी दर रहते है ,जिनका एकमात्र नियम केवल उनका(आराध्य)का सुख ही है एवं इसके अतिरिक्त अन्य कोई भी विधि अथवा नियम जिनके लिए निषेध है,ऐसे श्री गुरू तत्व को मेरा प्रणाम है)

ताम् गूढ प्रति वक्तव्य: , दिशा निर्दिष्ट शरणागतै।
लक्ष्यप्राप्तं सेतू सर्वहित: , न-निरर्थक: कर्माभ्याम: ।।
श्री गुरू तत्वं प्रणाम्य्हम:।
(जिनका प्रत्येक कथन अत्यधिक गहन होता है,इसी गहनता से जो शरण आए हुए की दिशा निर्देश करते है,जो सबके हित रुपी लक्ष्य को पूरा करने के सेतू है एवं जिनका कोई भी कार्य निर्रथक नही होता,ऐसे श्री गुरू तत्व को मेरा प्रणाम है)

देहि संदर्शनम् सौभाग्ययै,अंगसंगै तद् किं करै?
खलु मध्यम: च सज्जनै,समदृष्टि-सर्व कल्याणार्थाम:।।
श्री गुरू तत्वं प्रणाम्य्हम:।
(जिनका केवल सुन्दर दर्शन ही सौभाग्य प्रदान करता है,तब यदि इनका अंग संग हमे प्राप्त हो जाए तो क्या ही होगा?
जिनकी दृष्टि दुष्ट,मध्यम एवं सज्जन सभी का समान रूप से कल्याण करती है,ऐसे श्री गुरू तत्व को मेरा प्रणाम है)

तेहि पदानुरागी अनुरागित: , प्राप्तुं यदि सुभागितै।
निश्चयं दृष्टि कृपाहित: , इतिहि "प्यारी" शुभाच्छयाम:।।
श्री गुरू तत्वं प्रणाम्य्हम:।
(ऐसे गुरू चरण अनुरागियो का अनुराग भी यदि मुझे मिले तो मेरा सौभाग्य हो ओर मेरा दृढ विश्वास है की निश्चित रूप से ऐसा ही होगा,"प्यारी" की इसी शुभ इच्छा को लेकर श्री गुरू तत्व को मेरा प्रणाम है।)

श्री गुरू तत्वं प्रणाम्य्हम:।
(ऐसे श्री गुरू तत्व को मेरा प्रणाम है)

श्री गुरू तत्वं प्रणाम्य्हम:।
(ऐसे श्री गुरू तत्व को मेरा प्रणाम है)

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