Friday, 20 July 2018

श्रीप्रियतम का श्रृंगार -प्रियाप्रियतम बाँवरी

*श्रीप्रियतम का श्रृंगार*

श्रीवृन्दावन बिहारी श्रीश्यामसुन्दर का मधुर श्रृंगार, उनके अंगों पर सुशोभित आभूषण उनकी रस देह पर सुशोभित पीताम्बरी , यह गौरवल्लरी श्रीराधा से भिन्न कुछ हो भी कैसे सकता है। यही राधा उनकी श्वास श्वास उनके हृदय का प्रत्येक स्पंदन हो बाहर भीतर सदा भूषित हैं अपने प्रियतम सँग ही। श्रीबिहारी बिहारिणी जु हमारे प्यारे श्रीप्रियाप्रियतम सदैव एक दूसरे को भूषित कर रहे हैं। जहाँ दोनो अभिन्न होते हुए भी केलिविलास को दो हो रहे हैं , वहाँ दो होकर भी एक दूसरे के अंग प्रत्यंग वस्त्र आभूषण में सदैव भूषित हो रहे हैं। एक क्षण को भी किंचित मात्र भी विरह का स्थान नहीं है इस नित्य मिलन में। परन्तु लीलावत विरह का आस्वादन भी नित्य रस वर्धन हेतु ही है।

           रस नागरी मुग्धा श्रीस्वामिनी जु श्रीप्रियतम का सम्पूर्ण श्रृंगार हैं, इस गौरवल्लरी की भाव वृति बिना श्रीप्रियतम का श्रृंगार सम्भव ही नहीं हैं।अपनी बाल लीला के आरम्भ में एक नवल शिशु रूप में पलने में विराजमान हैं, वस्त्र आभूषणों से अलंकृत इस बाल पर श्रीयशोदा मुग्ध हुई जा रही हैं। परन्तु अभी सम्पूर्ण श्रृंगार हुआ ही कहाँ है। जैसे ही श्रीकीर्तिनंदिनी श्रीराधा जु नव बाला रूप में पलने में श्रीनागर सँग आकर सुशोभित हुई। आहा!!प्रियतमा का यह रस स्पर्श !!अब इस लीला हेतु सजे हैं जैसे नन्दतनुज।श्रीराधा के स्पर्श से ही यह नवल लीला खिलने लगी , अब युगल हृदय रस आनँद से आह्लादित हो रहा , यही आनँद सम्पूर्ण ब्रज में तरंगायित हो रहा है।

         श्रीप्रियाप्रियतम की प्रथम मिलन की निहारण , प्रथम मिलन का स्पर्श होकर यही उन्माद बिखर रहा समस्त दिशाओं में एक मंगलमय विधान होकर, जिससे प्रत्येक हृदय रस सिन्धु में लहराने लगा है।श्रीप्रियतम अपनी प्रिया को निहारते हुए अपनी नित्य केलि स्मृति में खोते जा रहे हैं। बाहर शिशुवत लीला में दो नवल कोमल शिशु एक पलने में विराजित हैं परन्तु उनके हृदय में निरन्तर केलि स्मृति ही विराजित है। श्रीरस राज अपने प्रत्येक आभूषण , वस्त्र को अपनी प्रियतमा का आलिंगन ही मान रहे हैं , इसी दिव्य रसानंद से उनका हृदय रसभूत हुआ जा रहा है। रक्त वर्ण ओष्ठों पर समधुर मुस्कान बिखर रही है ,जिसे ब्रजवासी निहार रहे, पर यह तो केवल उनकी प्रियतमा की प्रेम छटा को नेत्रों में भर उनके अधरों से झरती हुई मधुरिमा है, जिससे उनकी प्रियतमा भी सुख सिन्धु में प्रीति की नवल नवल लहरों के स्पर्श कर रही हैं।प्रियतम को निहारने को ही वृषभानु नंदिनी ने अपने जन्म पश्चात प्रथम बार नेत्र खोले हैं। नेत्रों से नेत्रों का वह निहारण। आहा!!श्रीप्रियतमा प्रथम ही निहारण में जैसे अपने प्रियतम को हृदय में भर चुकी हूं जैसे। उनसे आलिंगित हो उनका प्रथम श्रृंगार हुई हैं जैसे । युगल बाहर शिशुवत चंचलता दिखा रहे परन्तु उनके हृदय अपने नित्य केलि रस से ही आह्लादित हुए जा रहे हैं। क्रमशः

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