इस भाव में श्रीमुकेश जी द्वारा गायें हुए रसिक भाव रसपद
विनय - पद गान के समय आवाज अपनी श्रवणीय क्षमता से रखियेगा...
१
प्यारे तेरो सुमन श्रृंगार सुहावै।
नख शिख सुमन विभूषित साजे, कोटिन काम लजावैं।।
मधुर मधुर मन मोहन मुख लखि,मम मन अनत न जावै।
पुष्पित बदन पराग पियन हित,हर्ष दृगहु ललचावै।।
2
मुस्कहिं पिय अरु प्यारी दिये गलबहियां।
सुमन श्रृंगार लिये कर शीशा , निरखहिं नवल बिहारी।।
परसि बदन सुख लहिबे हेतहिं, युक्ति युगल विचारी।
हृदय हार शिर सुमन विभूषण, किये सुधार सुखारी।।
अलकहिं अलक कपोल कपोले, सटे सुरति सुख कारी।
मधुर मुसुकि बतरात परस्पर,अलियन और निहारी।।
गम गमाय मुख वायु सुगंधित, को हम कहाँ बिसारी।
हर्षण हेरि सखी सुख सरसहिं,देवहिं सर्वस वारी।।
3
राजत प्रीतम प्यारी अहो फुल बंगले में।
शोभा सदन मनहु मधु मूरति ,सुख सुषुमा श्रृंगारी।
पुष्पन को भल मुकुट चन्द्रिका, पुष्पन कुण्डल कारी।
पुष्पन बाजूबन्द बिजायठ, पुष्पन कंकण धारी।।
पुष्पन हृदय हार लसि लहरत, पुष्पनि करधनि ढारी।
पुष्पन कड़ा पुष्प को नुपूर, पुष्पहिं पुष्प सम्हारी।।
पुष्पनि छत्र पुहुप सिंहासन, पुष्प चमर छवि भारी।
हर्षण पुष्प छड़ी कर शोभित, पुष्प प्रोक्षणी न्यारी।।
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