Saturday, 21 July 2018

राजत प्रीतम प्यारी अहो फुल बंगले में।

इस भाव में श्रीमुकेश जी द्वारा गायें हुए रसिक भाव रसपद

विनय - पद गान के समय आवाज अपनी श्रवणीय क्षमता से रखियेगा...


प्यारे तेरो सुमन श्रृंगार सुहावै।
नख शिख सुमन विभूषित साजे, कोटिन काम लजावैं।।
मधुर मधुर मन मोहन मुख लखि,मम मन अनत न जावै।
पुष्पित बदन पराग पियन हित,हर्ष दृगहु ललचावै।।

2
मुस्कहिं पिय अरु प्यारी दिये गलबहियां।
सुमन श्रृंगार लिये कर शीशा , निरखहिं नवल बिहारी।।
परसि बदन सुख लहिबे हेतहिं, युक्ति युगल विचारी।
हृदय हार शिर सुमन विभूषण, किये सुधार सुखारी।।
अलकहिं अलक कपोल कपोले, सटे सुरति सुख कारी।
मधुर मुसुकि बतरात परस्पर,अलियन और निहारी।।
गम गमाय मुख वायु सुगंधित, को हम कहाँ बिसारी।
हर्षण हेरि सखी सुख सरसहिं,देवहिं सर्वस वारी।।

3
राजत प्रीतम प्यारी अहो फुल बंगले में।
शोभा सदन मनहु मधु मूरति ,सुख सुषुमा श्रृंगारी।
पुष्पन को भल मुकुट चन्द्रिका, पुष्पन कुण्डल कारी।
पुष्पन बाजूबन्द बिजायठ, पुष्पन कंकण धारी।।
पुष्पन हृदय हार लसि लहरत, पुष्पनि करधनि ढारी।
पुष्पन कड़ा पुष्प को नुपूर, पुष्पहिं पुष्प सम्हारी।।
पुष्पनि छत्र पुहुप सिंहासन, पुष्प चमर छवि भारी।
हर्षण पुष्प छड़ी कर शोभित, पुष्प प्रोक्षणी न्यारी।।

हमारे सभी भाव इयरफोन (हेडफोन) से सुने

Friday, 20 July 2018

श्रीप्रियतम का श्रृंगार -प्रियाप्रियतम बाँवरी

*श्रीप्रियतम का श्रृंगार*

श्रीवृन्दावन बिहारी श्रीश्यामसुन्दर का मधुर श्रृंगार, उनके अंगों पर सुशोभित आभूषण उनकी रस देह पर सुशोभित पीताम्बरी , यह गौरवल्लरी श्रीराधा से भिन्न कुछ हो भी कैसे सकता है। यही राधा उनकी श्वास श्वास उनके हृदय का प्रत्येक स्पंदन हो बाहर भीतर सदा भूषित हैं अपने प्रियतम सँग ही। श्रीबिहारी बिहारिणी जु हमारे प्यारे श्रीप्रियाप्रियतम सदैव एक दूसरे को भूषित कर रहे हैं। जहाँ दोनो अभिन्न होते हुए भी केलिविलास को दो हो रहे हैं , वहाँ दो होकर भी एक दूसरे के अंग प्रत्यंग वस्त्र आभूषण में सदैव भूषित हो रहे हैं। एक क्षण को भी किंचित मात्र भी विरह का स्थान नहीं है इस नित्य मिलन में। परन्तु लीलावत विरह का आस्वादन भी नित्य रस वर्धन हेतु ही है।

           रस नागरी मुग्धा श्रीस्वामिनी जु श्रीप्रियतम का सम्पूर्ण श्रृंगार हैं, इस गौरवल्लरी की भाव वृति बिना श्रीप्रियतम का श्रृंगार सम्भव ही नहीं हैं।अपनी बाल लीला के आरम्भ में एक नवल शिशु रूप में पलने में विराजमान हैं, वस्त्र आभूषणों से अलंकृत इस बाल पर श्रीयशोदा मुग्ध हुई जा रही हैं। परन्तु अभी सम्पूर्ण श्रृंगार हुआ ही कहाँ है। जैसे ही श्रीकीर्तिनंदिनी श्रीराधा जु नव बाला रूप में पलने में श्रीनागर सँग आकर सुशोभित हुई। आहा!!प्रियतमा का यह रस स्पर्श !!अब इस लीला हेतु सजे हैं जैसे नन्दतनुज।श्रीराधा के स्पर्श से ही यह नवल लीला खिलने लगी , अब युगल हृदय रस आनँद से आह्लादित हो रहा , यही आनँद सम्पूर्ण ब्रज में तरंगायित हो रहा है।

         श्रीप्रियाप्रियतम की प्रथम मिलन की निहारण , प्रथम मिलन का स्पर्श होकर यही उन्माद बिखर रहा समस्त दिशाओं में एक मंगलमय विधान होकर, जिससे प्रत्येक हृदय रस सिन्धु में लहराने लगा है।श्रीप्रियतम अपनी प्रिया को निहारते हुए अपनी नित्य केलि स्मृति में खोते जा रहे हैं। बाहर शिशुवत लीला में दो नवल कोमल शिशु एक पलने में विराजित हैं परन्तु उनके हृदय में निरन्तर केलि स्मृति ही विराजित है। श्रीरस राज अपने प्रत्येक आभूषण , वस्त्र को अपनी प्रियतमा का आलिंगन ही मान रहे हैं , इसी दिव्य रसानंद से उनका हृदय रसभूत हुआ जा रहा है। रक्त वर्ण ओष्ठों पर समधुर मुस्कान बिखर रही है ,जिसे ब्रजवासी निहार रहे, पर यह तो केवल उनकी प्रियतमा की प्रेम छटा को नेत्रों में भर उनके अधरों से झरती हुई मधुरिमा है, जिससे उनकी प्रियतमा भी सुख सिन्धु में प्रीति की नवल नवल लहरों के स्पर्श कर रही हैं।प्रियतम को निहारने को ही वृषभानु नंदिनी ने अपने जन्म पश्चात प्रथम बार नेत्र खोले हैं। नेत्रों से नेत्रों का वह निहारण। आहा!!श्रीप्रियतमा प्रथम ही निहारण में जैसे अपने प्रियतम को हृदय में भर चुकी हूं जैसे। उनसे आलिंगित हो उनका प्रथम श्रृंगार हुई हैं जैसे । युगल बाहर शिशुवत चंचलता दिखा रहे परन्तु उनके हृदय अपने नित्य केलि रस से ही आह्लादित हुए जा रहे हैं। क्रमशः

Thursday, 19 July 2018

श्री राधा कृष्ण अति गूढ गोपनीय तत्व

🍂🌀 *श्रीश्री राधा कृष्ण अति गूढ गोपनीय तत्व* 🌀🍂
〰〰〰〰〰〰〰〰

✳【श्री सदाशिव एवम श्री नारदजी संवाद (श्री पद्मपुराण)】

🌺श्री नारदजी को अत्यंत उपयुक्त पात्र जानकर श्री सदाशिव उनके आगे रहस्योद्घाटन करते हैं

❗श्री सदाशिव कहते हैं कि नारद जो मैं कहने जा रहा हूँ ,वह ब्रह्माजी से भी गुप्त रखा गया है

🛐श्री सदाशिव कृपा कर श्री नारदजी के माध्यम से समस्त जीवों के कल्याणार्थ कहना प्रारम्भ करते हैं-

श्री कृष्ण की अन्तरंगा ओर बहिरंगा शक्ति

1अन्तरंगा शक्ति *(मधुर्यमयी लीला शक्ति ,प्रेम शक्ति,स्वरूप शक्ति स्थापिनी शक्ति आकर्षणी शक्ति संयोगिनी शक्ति वियोगनी शक्ति ह्लादिनी शक्ति, योगमाया)*

2 बहिरंगा शक्ति  *श्री, भू, लीला, , चिन्त्य,अचिन्त्य, मोहिनी, कोसली*

🍁"श्री कृष्ण जब श्रीमती राधा रानी जी से निकुंज में मिलने जाते है

🌪 तब श्री कृष्ण में विद्यमान *श्री वासुदेव* ओर *क्षीरोदकशायी विष्णु* को कृष्ण की *आकर्षणी शक्ति*,
श्री कृष्ण के दिव्य शरीर मे से उनको निकाल कर आकाश में स्थित कर देती है

☄जब लीला सम्पन होती तो *स्थापनी शक्ति* वासुदेव ओर क्षीरोदक्षयी विष्णु को वापस श्री कृष्ण के शरीर मे स्थापित कर देती है।

➡ ☘⛺यानी निकुंज में कोई भी विष्णु तत्व नही जाता केवल ओर केवल नंदनंदन कृष्ण जाते है⬅

♻ऐसे ही श्री राधा रानी के 3⃣ स्वरूप है-

श्री राधा जी 3 स्वरूप है
〰〰〰〰〰〰〰
1 कामा (संयोगिनी शक्ति)
2 वामा (वियोगिनी शक्ति)
3 कीर्ति सुते (ह्लादिनी शक्ति)

🈴 कीर्ति सुते अहलादिनी शक्ती श्रीराधारानी हैं यही हमारी इष्ट हैं इनहि में निहित कामा संयोगिनी और वामा बियोगिनी रहती हैं

🏕श्री कीर्तिदा सुता श्री राधा जी को पता है उनके प्राण नाथ कभी भी वृन्दावन छोड़ कर नही जाते परन्तु वामा और कामा शक्ति नही जानती

🌷🍂जैसे नंद नंदन कृष्ण रास के बीच में अंतर्ध्यान हो गये थे वैसे ही वो वृन्दावन में अंतर्ध्यान हो गए केवल वासुदेव कृष्ण ही मथुरा गये थे जबकि नंद नंदन वृन्दावन में अंतर्ध्यान हो गये

🍃 कीर्तिदा सुता को इसलिए विप्रलभ रस का आस्वादन उसे प्रवास  कहते है

🌾जबकि वामा वियोगनी शक्ति सोचती है कि मेरे कृष्ण मथुरा चले गये है तो वो विरह में व्याकुल होकर यमुना जी रास्ते श्री गोलोक धाम चली जाती है

🏵 जवकि कामा सयोगनी शक्ति व्रज में रहती है कृष्ण विरह में अति व्याकुल हो के जब कृष्ण का पुनः मिलन होता है कुरुक्षेत्र में उहा श्री कृष्ण से मिलने जाती है

🌹जवकि  श्री कीर्तिदा सुता श्री राधा नित्य नवीन लीलाओ का रस आस्वादन करती है श्री नंदनंदन श्याम सुंदर के साथ

जय जय श्री श्री राधे श्याम🙏🏼 🙇🏻🌹

🏵🍂🏵🍃🏵🍂🏵🍃🏵🍂