Monday, 26 June 2017

कृष्ण काँति

ब्रह्मांड की सबसे प्रबल वस्तु केवल और केवल श्री कृष्ण कांति हैं

यह बात श्री चैतन्य महाप्रभु जी ने कही हैं जिन्हें श्रीकृष्ण कविराज जी ने लिखा हैं

एक बार जब श्रीमनमहाप्रभु जी पुरी के पुष्पउद्धान में भ्रमण कर रहे थे

तब उन्हें क़दमब वृक्ष के नीचे श्रीकृष्ण के माधुरमय स्वरूप स्वरूप के दर्शन हुए उनका दर्शन मात्र करने से श्रीग़ौरचंद्र के चित्त में प्रेम का ऐसा विलक्षण प्रकाट्य हुआ के कई घंटो तक मूर्च्छित रहे और जब होश आया तभी बोले

" कृष्ण कांति परम प्रबल"

कहो सखी! की करी उपाय
जिनी उपमानगण हरे साभार नेत्र मन, कृष्ण कांति परम प्रबल

कृष्ण कांति प्रबल ऐसी प्रबल जो अनंत ब्रह्माण्ड को प्रेम सागर में प्लावित कर देती हैं

श्रीअद्वैत प्रभु बोले- जीव को केवल
राधा कांति कृष्ण का ही भजन करना चाहिए केवल वही ही पंचम पुरुषार्थ को प्राप्त कराता हैं

श्रीमहाप्रभु बोले-
कृष्णदअद्भुत बलाहक़ मोर नेत्र चातक

श्रीकृष्ण अद्भुत कांति हाय! बहुत बलशाली हैं मेरे नयन तो चातक पक्षी के भाँति प्यासे ही मरे जा रहे हैं

श्रीग़ौरचंद्र बोले- सौदामिनी पीताम्बर स्थिर रहे निरंतर मुक्ताहार बंकपाती भाल

" दामिनी जैसे आकाश में चंचल रहती हैं परंतु यहाँ तो पीताम्बर रूप में स्थिर खड़ी हैं और मुक्ताहार की माला माथे पर सजाए हैं

" इंद्रधनुष जैसा मोर पंख जो शीश पर शोभायमान हैं और धनुष के आकार की वैजनती माला शोभित हो रही हैं

आगे बोले- इंद्रधनु शिखि पाखा, उपरे दियाछे देखा आर धनु वैजयन्ती माल

" इंद्रधनुष जैसा मोर पंख जो शीश पर शोभायमान हैं और धनुष के आकार की वैजनती माला शोभित हो रही हैं

वास्तव में वैजयन्ती माला पाँच प्रकार के फूलो से बनती हैं और कामदेव के भी पाँच बाण विख्यात जिनके द्वारा वह अपनी विजय प्राप्त करता हैं
हमें लगता हैं श्रीकृष्ण के यह पाँच पुष्प वैजयन्ती माला में यह वही कामदेव के पाँच पुष्प बाण हैं जिनके द्वारा वह हर ब्रज रमनी को घायल करता हैं

श्रीग़ौर आगे बोले

- मुरलीर कलध्वनि मधुर गरजन शूनी वृंदावन नाचे मोरचय
मुरली की ध्वनि जो नित नयी नयी सी लगती हैं उसकी गरजन सुन वृंदावन के मोर नृत्य करने लगते हैं
ऐसी लीलाअमृत की वर्षा जो चौदह भुवन को प्रेम से सींच रही हैं"
" मोहन मूर्ति तृभंग"
ब्रजदेवीया सोचती हैं श्रीकृष्ण तीन अँगो से इसीलिए टेड़े हैं क्यूँकि अपने माधुरमय का भार सहन ना करने के कारण टेड़े हैं
परंतु श्रीराधाचरणनिष्ठ गौड़ीय वैष्णव सोचते हैं - " श्रीराधारानी के वस्त्र का छोर पकड़ने के लिए ही  श्रीकृष्ण ही तीन अंग से टेड़े अर्थात तृभंग ललित बने हैं
श्रीकृष्ण का विग्रह अमृतसिंधु है उसमें जो कुछ पड़ जाता हैं वही अमृतमय हो जाता हैं

जो श्रीकृष्ण के माधुरमय विग्रह में पड़ गया वह भी मधुर हो गया क्या चंदन , क्या कुंकुम सभी कुछ ...

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