Thursday, 28 December 2017

वृजेन्द्र नंदन कृष्ण मोर पंख क्यों धारण करते है इसका क्या गूढ़ कारण है

वृजेन्द्र नंदन कृष्ण मोर पंख क्यों धारण करते है इसका क्या गूढ़ कारण है ????

श्रील रूप गोस्वामीपाद कहते है
जहाँ मोरे पंख होता उहा सर्प नही रहता अर्थात जब श्री राधा रानी को मान रूपी सर्पिणी डस लेती है वो अपनी सखी से कहती जाओ शिखीपुछमौली(मोर पंख धारण)करने बाले श्री कृष्ण को बुला लाओ
अर्थात श्री कृष्ण के मोर पंख को देख कर राधा रानी का मान भंग हो जाएगा अर्थात राधा रानी को मान रूपी सर्पिणी से मुक्त हो जाएगी अर्थात मान भंग हो जायेगा

पुष्टि मार्ग की मणि

जय श्री कृष्ण

पुष्टि मार्ग की मणि

गोवर्धनवासी सांवरे तुम बिन रह्यो न जाये ।

— हे गोवर्धनवासी श्री कृष्ण, अब मैं आपके बिना नही रह सकता

[1] बंकचिते मुसकाय के सुंदर वदन दिखाय ।
लोचन तलफें मीन ज्यों पलछिन कल्प विहाय ॥१॥
— आपकी इस सुन्दर छवि ने मेरा मन मोह लिया है अौर आपकी मुस्कान में मेरा चित्त अटक गया है । जैसे मछली बिना पानी के तडपती है वैसे ही मेरी आँखौ को आपसे बिछडने की तडपन हो रही है अौर मेरा एक एक पल कल्प के समान बीत रहा है ।

[2] सप्तक स्वर बंधान सों मोहन वेणु बजाय ।
सुरत सुहाई बांधि के मधुरे मधुर गाय ॥२॥
— हे मोहन आपकी वंशी की धुन सेकडौ संगीत स्वरौ से अोतप्रोत मधुर गीत गा रही है।

[3] रसिक रसीली बोलनी गिरि चढ गाय बुलाय ।
गाय बुलाई धूमरी ऊंची टेर सुनाय ॥३॥
— आप जब पर्वत पर चढकर गायौं को बुलाते हो, अौर उस धूमल गाय को ऊचे स्वर से बुलाते हो, वह छवि मेरे हृदय में बस गयी है ।

[4] दृष्टि परी जा दिवस तें तबतें रुचे नही आन ।
रजनी नींद न आवही विसर्यो भोजन पान ॥४॥
— अौर जिस दिन से मैंने आपकी इन छवियौं का दर्शन किया है, मुझे किसी भी अन्य वस्तु में रुचि नही रही अौर नाही मुझे रात को नीद आती है, यहाँ तक कि मैं खाना पीना भी भूल गया हूँ ।

[5] दरसन को नयना तपे वचनन को सुन कान ।
मिलवे को हियरा तपे जिय के जीवन प्रान ॥५॥
— हे साँवरे, मेरे जीवनप्राण, तेरे नित्य दर्शन के लिये मेरे नयन, तेरी बोली के लिये मेरे कान एंव तुझसे मिलने के लिये मेरा हृदय तडपता रहता है ।

[6] मन अभिलाखा यह रहे लगें ना नयन निमेष ।
इक टक देखौ आवतो नटवर नागर भेष ॥६॥
— अब मेरे मन की यही अभिलाषा है कि मेरे नयन एक क्षण के लिये भी बन्द न हौं अौर तुम्हारे नटवर नागर रूप का ही एकटक दर्शन करते रहैं ।

[7] पूरण शशि मुख देिख के चित चोट्यो वाहि ओर ।
रूप सुधारस पान को जैसे चन्द चकोर ॥७॥
जैसे चकोर पक्षी पूर्णमासी के चन्द्रमा को एकचित होकर देखता रहता है वैसे ही आपके दिव्य स्वरूप का अम्रतमयी पान करने को मेरा चित्त व्याकुल रहता है ।

[8] लोक लाज कुळ वेद की छांड्यो सकल विवेक ।
कमल कली रवि ज्यों बढे छिन छिन प्रीति विशेष ॥८॥
— मैं समाज, परिवार अौर शास्त्र की लाज नही कर पा रहा हूँ अौर मेरा पूरा विवेक नष्ट ही हो गया है । हर क्षण मेरी व्याकुलता अापके प्रति विषेश प्रेम को एसे ही बढा रही है जैसे कि सूर्य के उगते ही कमल की कलियाँ बढने लगती हैं ।
मन्मथ कोटिक वारने निरखत डगमगी चाल ।

[9] युवति जन मन फंदना अंबुज नयन विशाल ॥९॥
— जैसे युवतिया अपने विशाल नैनौ से साधारण जन के मन को फँसा देती हैं वैसे ही आपकी डगमगाती चाल को देखकर मेरा मन बंध गया है अौर इस चाल पर मैं करोडौं मन्मथ (कामदेव) न्यौछावर कर दू ।

[10]प्रेमनीर वरखा करो नव घन नंद किशोर ॥१०॥
— जैसे चातक अौर मोर वर्षा के लिये व्याकुल होकर रट लगाते रहते हैं वैसे ही लाडले मुझे ये रट लग गयी है तो हे नंद किशोर आप नये नये रूप में प्रेम रूपी जल की वर्षा करो ।

[11] कुंज भवन क्रीडा करो सुखनिधि मदन गोपाल ।
हम श्री वृंदावन मालती तुम भोगी भ्रमर भुवाल ॥११॥
— जैसे चातक अौर मोर वर्षा के लिये व्याकुल होकर रट लगाते रहते हैं वैसे ही लाडले मुझे ये रट लग गयी है तो हे नंद किशोर आप नये नये रूप में प्रेम रूपी जल की वर्षा करो ।

[12] युग युग अविचल राखिये यह सुख शैल निवास ।
गोवर्धनधर रूप पर बलिहारी चतुर्भुज दास ॥१२॥
— हे गोवर्धन नाथ, अगर मुझे युगौं युगौं तक भी पृथ्वी पर जन्म मिले तो गोवर्धन पर्वत ही मेरा निवास हो क्यौंकि आपके गोवर्धनधारी रूप पर चतुर्भुजदास हमेशा बलिहारी है ।

Saturday, 23 December 2017

खिचड़ी महोत्सव

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               *खिचड़ी महोत्सव*

😇 *माघ का महीना बड़ा ही पवित्र होता है माघ के महीने में स्नान दान का बड़ा ही महत्व है साथ ही साथ खिचडी के दान और* *खिचड़ी का  भोग लगाने का भी बड़ा महत्व है.*

*वृंदावन में लाडले ठाकुर श्री राधावल्लभलाल को प्रात:काल गर्म-गर्म खिचडी का भोग लगाया जाता है।

😍यह विशेष खिचडी *मूंग की दाल, चावल, शुद्ध घी, केसर, लौंग, जायफल, जावित्री, काली मिर्च, अदरक, इलायची, दाख, छुहारा, बादाम, पिस्ता, किशमिश, गरी,* आदि मेवा-मसालों से तैयार की जाती है,
साथ में *सब्जी, अचार-मुरब्बा, दही, खीरसाकी चिपिया,रबडी की कुलिया,मिष्टान्न, पापड, कचरिया,मक्खन, मिश्री, फल, मेवा, रेवडी, गजक, केसर और मिश्री युक्त दूध* आदि पदार्थ भी हैं।

🍄प्रात:काल मंगला आरती से पहले ठाकुर जी को ऊनी, मखमली कपडे से तैयार फरगुल और रजाई धारण कराई जाती है। चांदी की अंगीठी में चंदन की लकडी जला कर उन्हें तपाया भी जाता है। श्रद्धालुओं की भावना है कि उनके ठाकुर जी कडकडाती ठंड में शीत से ग्रस्त न हों।🍄

🌕मंदिर में यह क्रम लगभग एक महीने तक रोज चलता है , जिसे खिचडी महोत्सव कहते हैं।

🌒"खिचड़ी राधा वल्लभ जू को  प्यारी,
किसमिस, दाख,चिरौजी ,पिस्ता ,अदरक ,सोरुचिकारी।
दही, कचरिया ,वर, सेधाने,वरा, पापरा, बहु तरकारी जायफल, जावित्री, मिर्चा ,घृत, सोसीच संवारी"🌒

❄प्रति वर्ष पौषशुक्ल द्वितीया से माघ शुक्ल द्वितीया तक बडे ही लाड-दुलार से उनकी सेवा की जाती है. भोग लगाते समय संत-पद का गायन होता है. सुबह लगभग 6 से 8 बजे तक चलने वाले इस खिचडी महोत्सव के दौरान समूचा ठाकुर वल्लभ मंदिर परिसर ठाकुर राधा वल्लभ लाल की जय-जयकार से गूंज उठता है. इस खिचडी प्रसाद का स्वाद बडा ही निराला होता है. ठंड में भी अल्ल सुबह प्रसाद पाने के लिए मंदिर के बाहर भक्तों की लंबी-लंबी कतारें लग जाती हैं।❄

🎨ऐसी मान्यता है कि इस प्रसाद का एक कण तक पाने से लोगों का जीवन धन्य हो जाता है और उनको सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है.
ठाकुर राधावल्लभ मंदिर में प्रतिवर्ष खिचडी महोत्सव आयोजित करने का शुभारंभ 18वींशताब्दी में गोस्वामी ब्रजलाल महाराज ने किया था। उनके ग्रंथ सेवा विचार में इस उत्सव का विस्तृत वर्णन है। 🎨

💈वृंदावन में भोग के साथ राग का अधिक महत्व है।इसलिए उनके सामने जब खिचडी का भोग रखा जाता है, तब मंदिर में सामूहिक गायन भी चलता रहता है। खिचडी का भोग लगाने के बाद उन्हें आचमन करवा कर पान का बीडा खिलाया जाता है और मंगला आरती होती है। इसके बाद ठाकुर जी की झांकी दिखाई जाती है।💈

🎊उत्सव के समापन पर माघ शुक्ल द्वितीया को कई प्रकार के मोहन भोग और सूजी के हलवे का विशेष भोग लगाया जाता है,साथ ही मंदिर में खिचडी की विशेष पंगत भी होती है।असंख्य राधावल्लभीय वैष्णव जन भी अपने-अपने घरों में अपने ठाकुर को पूरे एक माह तक खिचडी का भोग लगाते हैं।🎊

                   *"जय जय श्री राधा"*
              " *जय जय श्री हित हरिवंश*"

       🔮📿 *श्री राधा केलि कुञ्ज*📿🔮

Monday, 18 December 2017

भगवदीय नयन

जो भगवदीय होते है, केवल उनके कंठ मे ही अमृत होता है। जब वे भगवदीय भगवद् लीला का वर्णन करते है तब वह कथामृत उनके मुख से निकलता है। और जो इस कथामृत को आदर पूर्वक पान करते है केवल वे ही भगवान को प्राप्त करते है।"

इस तरह श्री हरिरायजी आज्ञा करते है की भगवदीय वही है जो (१) श्री आचार्यजी के श्री चरणों का दृड़ आश्रय रखता हो, (२) श्री ठाकोरजी की सेवा द्वारा संतुष्ट रहता हो और अन्य किसी देव का भजन स्वप्न मे भी न जानता हो, (३) अन्य किसी की अपेक्षा न करता हो, (४) काम लोभ मोह मत्सर आदि से रहित हो और द्रव्य का भी लोभ न हो, (५) निरपेक्ष भाव से प्रभु के सेवा करता हो, (६) मन से विरकत रहे - वैराग्य पूर्वक रहे, (७) प्राणी मात्र पे दया भाव रखता हो, (८) किसी की इर्षा न करता हो, और (९) भगवद् कथा आदर पूर्वक श्रवण करता हो।

जिसमे यह सारे गुण - यह नव प्रकार के लक्षण देखने मिले उनका संग करना, शुद्ध मन से सन्मान करना और उनके वचनो पर दृड़ विश्वास रखना। इस प्रकार श्री महाप्रभुजी प्रसन्न हो कर वैष्णवो को आनंद का दान करते है।
****************************
श्री ठाकुरजी की अतिशय कृपा से हमें यह मनुष्य शरीर मिला है। उसमे सभी अंग का अपना महत्व है। लेकिन आँखो का अपना अलग महत्व है। इसके बिना जग अँधेरा है। हम ठाकुरजी के दर्शन भी नहीं कर सकते है।आँखों के चार अंग है ।पलके, पुतली, आँसू और बरौनी।जब हम प्रभु के दर्शन करते है उस समय यह चारौ अपने भाव व्यक्त करते है।"पलकें कहे मूँद ले मोहन को अँखियाँमें, कहे मोहे निहारन दे।''पुतली कहे हट जा सामने से,निज जीवन मोहे सँवारन दे।,आँसू कहे, नंदलाल निहार लिए तुमने, अब पायँ पखारन दे।धर धीरज बोल उठी बरनी, पग नीरजकी रज झारन दे मोहे।वाह,,,,क्या भाव है चारोंका,?
🎍🎍🎍🎍🎍🎍🎍🎍
।।श्री मदन मोहन प्रभु प्यारे की जय।।
।।श्रीमथुराधीश प्रभु प्यारे की जय।।
।।श्री नवनीत प्रिय प्रभु प्यारे की जय।।
।।श्रीगोवर्धननाथ प्रभु प्यारे की जय।।
।।जय गोकुल के चंद की।।
।।श्यामसुंदर श्री यमुना महाराणी की जय।।
।।श्री वल्लभाधीश की जय।।
।।श्री गुंसाईजीपरमदयाल की जय।।
।।श्री वल्लभकुल परिवार की जय।।
।।वल्लभना व्हाला सर्वे वैष्णवने भगवद्स्मरण।।
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भगवदीय नयन

जो भगवदीय होते है, केवल उनके कंठ मे ही अमृत होता है। जब वे भगवदीय भगवद् लीला का वर्णन करते है तब वह कथामृत उनके मुख से निकलता है। और जो इस कथामृत को आदर पूर्वक पान करते है केवल वे ही भगवान को प्राप्त करते है।"

इस तरह श्री हरिरायजी आज्ञा करते है की भगवदीय वही है जो (१) श्री आचार्यजी के श्री चरणों का दृड़ आश्रय रखता हो, (२) श्री ठाकोरजी की सेवा द्वारा संतुष्ट रहता हो और अन्य किसी देव का भजन स्वप्न मे भी न जानता हो, (३) अन्य किसी की अपेक्षा न करता हो, (४) काम लोभ मोह मत्सर आदि से रहित हो और द्रव्य का भी लोभ न हो, (५) निरपेक्ष भाव से प्रभु के सेवा करता हो, (६) मन से विरकत रहे - वैराग्य पूर्वक रहे, (७) प्राणी मात्र पे दया भाव रखता हो, (८) किसी की इर्षा न करता हो, और (९) भगवद् कथा आदर पूर्वक श्रवण करता हो।

जिसमे यह सारे गुण - यह नव प्रकार के लक्षण देखने मिले उनका संग करना, शुद्ध मन से सन्मान करना और उनके वचनो पर दृड़ विश्वास रखना। इस प्रकार श्री महाप्रभुजी प्रसन्न हो कर वैष्णवो को आनंद का दान करते है।
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श्री ठाकुरजी की अतिशय कृपा से हमें यह मनुष्य शरीर मिला है। उसमे सभी अंग का अपना महत्व है। लेकिन आँखो का अपना अलग महत्व है। इसके बिना जग अँधेरा है। हम ठाकुरजी के दर्शन भी नहीं कर सकते है।आँखों के चार अंग है ।पलके, पुतली, आँसू और बरौनी।जब हम प्रभु के दर्शन करते है उस समय यह चारौ अपने भाव व्यक्त करते है।"पलकें कहे मूँद ले मोहन को अँखियाँमें, कहे मोहे निहारन दे।''पुतली कहे हट जा सामने से,निज जीवन मोहे सँवारन दे।,आँसू कहे, नंदलाल निहार लिए तुमने, अब पायँ पखारन दे।धर धीरज बोल उठी बरनी, पग नीरजकी रज झारन दे मोहे।वाह,,,,क्या भाव है चारोंका,?
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।।श्री मदन मोहन प्रभु प्यारे की जय।।
।।श्रीमथुराधीश प्रभु प्यारे की जय।।
।।श्री नवनीत प्रिय प्रभु प्यारे की जय।।
।।श्रीगोवर्धननाथ प्रभु प्यारे की जय।।
।।जय गोकुल के चंद की।।
।।श्यामसुंदर श्री यमुना महाराणी की जय।।
।।श्री वल्लभाधीश की जय।।
।।श्री गुंसाईजीपरमदयाल की जय।।
।।श्री वल्लभकुल परिवार की जय।।
।।वल्लभना व्हाला सर्वे वैष्णवने भगवद्स्मरण।।
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