व्रज रज मिश्रित यमुना जल.....
शरदपूर्णिमा की रात्रि को श्री कृष्ण ने जब श्री श्यामा जू की आज्ञा पा कर महारास का प्रारम्भ किया तब श्री राधा रानी के संग तो उन्ही के श्याम ने नृत्य किया ही..
साथ ही हर एक गोपी के हृदयस्थ प्रभु श्री कृष्ण उस परम भाव मयी बेला में उसी के समक्ष प्रकट हो नृत्य मयी रास करने लगे..
संतों के माध्यम से ही श्रवण किया जाता है कि दो गोपियों के साथ एक कृष्ण नृत्य किये..
"जिन जिन गोपियों के ह्रदय भाव मिलते हुए रहे"
उन्ही दोनों गोपियों के बीच उनके हृदयस्थ श्री कृष्ण प्रकट हुए..
महारास का प्रारम्भ होने पर प्रथमतः रास श्री युमुना पुलिन के पास होता रहा....उसके पश्चात् श्री यमुना के पुलिन पर होना प्रारम्भ हो गया....तत्पश्चात श्री कृष्ण श्री राधे व् सभी गोपियों सहित श्री यमुना जल में उतर कर रास करने लगे....
श्री राधे जू व् सभी गोपियों सहित श्री कृष्ण इतना तीव्र गति से महारास में नृत्य करते रहे..कि जब रास दर्शन करने को ब्रह्म लोक से श्री ब्रह्मा जी ने रास के दर्शन करने चाहे तो ऐसा प्रतीत होता था मानो बादलों में बिजली चमक रही हो..
क्योंकि गौर वर्ण श्री जू और उनकी सखियों का है..(जबकि श्री जू का सौंदर्य सभी गोपियों से अनंत गुना है..किसी भी प्रकार उनके सौंदर्य का वर्णन नहीं किया जा सकता ..वह अवर्णनीय है)..
और श्याम वर्ण श्री कृष्ण है..इसी कारण ऊपर से दर्शन करने पर बादलों में बिजली चमकती सी प्रतीत होती थी..
इसी तीव्र गति रास में जब श्री युगल किशोर सभी गोपियों सहित नृत्य करते है..तब श्री श्यामाश्याम व् सभी गोपियों के चरणों में जो व्रज रज लगी है वह यमुना जल में इस प्रकार मिश्रित हो गई की जल की अधिकता से रज की अधिकता हो गई..जो कि अहर्निश बनी हुई है..
वस्तुतः जब हम यमुना जल हाथ में पान करने को लेते है तब हमें वह जल का ही अनुभव देता है..किन्तु सत्यता में उस जल में जल से भी अधिकता व्रज रज की ही है..इसी कारण पुष्टि सम्प्रदाय के आचार्य श्री मद वल्लभाधीश जी ने "श्री यमुनाष्टकं" की रचना करते समय प्रथम श्लोक की दूसरी ही पंक्ति में इसी बात को कहते हुए उस पर प्रकाश डाला है..कि..
"मुरारी पद पंकज स्फुर दमन्द रेणूत्कटाम्"
अर्थात-मुरारी भगवान् के जो कोमल चरण कमल है..उन चरणों की रेणू को अपने जल की अपेक्षा अधिक धारण करने वाली श्री यमुना जी है..!
और आज हम जिन श्री यमुना जी के जल का दर्शन करते है..वस्तुतः वह श्री यमुना जल तो है ही....
किन्तु यमुना जल के नाम से प्रसिद्ध वह इस धरा पर अत्यंत दुर्लभ ब्रह्म रस ही है....
वही ब्रह्म रस रुपी श्री यमुना जी जिसका मूल प्रादुर्भाव श्री कृष्ण के ह्रदय से हुआ है..
श्री यमुना जी..जो अधमाधम पर भी अपनी करुणा मयी दृष्टि से कृपा कर श्री कृष्ण की भक्ति से उसके जीवन को श्रृंगारित करने वाली है..
निसंदेह जो भक्ति प्रदायिनी होते हुए स्वयं भक्ति महारानी की ही स्वरूप है..
ऐसी अनंत आनंद की सागर..कृपा मयी करुणा मयी श्री यमुना जी के चरणारविन्द में हम सादर नमन करते है....जो हमें श्री कृष्ण की ओर सहज ही अपनी कृपा कर ले जाती है..
जो की मानव जीवन को पाने की एक मात्र सार्थकता है....!
श्री राधे..🙌
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