.................प्रीति: याचनां..…...........
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गोपाधिराज नंदना ,सुता यशोदा चन्दनां।
गोपागंना सर्व पति,उरऽजति निकुंज मम्।।१।।
(हे समस्त गोपो के राजा के नंदन अर्थात पुत्र एवं यशोदा के पुत्र,उनके ह्रदयाकाश रूपी चंद्रमा तथा सभी गोपियो के पति,मेरे इस ह्रदय निकुंज मे विराजित हो)
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किरत भानु नंदिनी,ब्रजेन्द्र लाल संगिनि।
ललितादि अष्टंग सखी,उरऽजति निकुंज मम्।।२।।
(हे किरति एवं वृषभानु की पुत्री,हे ब्रज के इन्द्र अर्थात ब्रज के राजा की संगिनी आप अपनी ललिता आदि आपके ही आठ अंगरूप सखियो सहित,मेरे ह्रदय निकुंज मे विराजित हो)
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तमाल द्रुम चढति,कनक उर्ध्व वल्लरी।
जटिल निभृत विलासिनी,उरऽजति निकुंज मम्।।३।।
(हे तमाल वृक्ष पर ऊपर की ओर चढी हुई स्वर्ण बेल समान, अति अति गहन निभृत मे विलास करती हुई,मेरे ह्रदय निकुंज मे विराजित हो)
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कटाक्ष अक्षि दृश्यताम्,विधि विविध निवारणाम्।
क्रीडां विभिन्न करिष्यषि,उरऽजति निकुंज मम्।।४।।
(नयनो की विभिन्न भाव भंगिमाओ से देखती आप एवं आपके भाव को जानकर उसके निवारण के बहुत से उपाय एवं इसके लिए ही अनेको खेल करते लालजु,मेरे ह्रदय निकुंज मे विराजित हो)
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निपुण अनंग केलितां,सदेह अरू विदेहितां।
रति पति प्रदायति,उरऽजति निकुंज मम्।।५।।
(देह सहित एवं बिना देह(केवल रस रूप) के भी,अनंग केलि मे निपुण आप अपने पति अर्थात लालजु को रति(प्रेम) प्रदान कराती हुई,मेरे ह्रदय निकुंज मे विराजित हो)
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ताम्बूल ओष्ठ रचित:,प्रिय पिपासा वर्धित:।
अनुदान निदानं रति,उरऽजति निकुंज मम्।।६।।
(पान की लाली से रचे आपके अधर प्रियतम की रस प्यास को ओर बढा देते है तब आप इसके निवारण के लिए लालजु को रति का दान देती हुई,मेरे ह्रदय निकुंज मे विराजित हो)
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भाँति मयूरौ नृत्यति,नवीन नित्यं दम्पति।
कुशल कोक केलिहि:,उरऽजति निकुंज मम्।।७।।
(आप कोक कला मे अत्यंत दक्ष एवं सदैव ही नव दम्पति अर्थात सदैव नये वर वधू,मोर बनकर नृत्य करते हुए,मेरे ह्रदय निकुंज मे विराजित हो)
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विविध भेषां धरिष्यषि,हितार्थ निभृत गमिष्यषि।
पदाम्बुजं प्रिया सेवितं,उरऽजति निकुंज मम्।।८।।
(श्री प्रियाजु के चरणकमलो की सेवा हेतू,निभृत मे प्रवेश की कामना लेकर,अनेको छद्म भेष बनाते हुए,मेरे ह्रदय निकुंज मे विराजित हो)
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खग मृग शावक:,मयूर केकी धावत:।
लडैति लाड: लडावति,उरऽजति निकुंज मम्।।९।।
(जो सबके लडैति अर्थात लाडले है वे पक्षी हिरण के बालको एवं मोर कोयल आदि के पीछे दोडते एवं उनको लाड लडातै हुए,मेरे ह्रदय निकुंज मे विराजित हो)
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युक्तं श्रृंगार षोडशी,ललित् कौशलं अपि।
मधुर हास सुवासिनि,उरऽजति निकुंज मम्।।१०।।
(सोलह श्रृंगारो एव ललित कला से भी युक्त आप,मीठी मुस्कान और आपके श्री अंगो की मधुर सुवास सहित,मेरे ह्रदय निकुंज मे विराजित हो)
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अवलंब विप्रलंभ मान, भृकुटी तनी कमान।
भूषणं बिम्ब पश्यति,उरऽजति निकुंज मम्।।११।।
(कभी आभूषणो मे अपने प्रतिबिंब को देखकर अथवा कभी विप्रलम्भ(प्रियाप्रियतम की एक ऐसी स्थिति जिसमे प्रियतम स्वयं को प्रिया और प्रिया स्वयं को प्रियतम समझने लगते है) के कारण आपके भौहो रूपी धनुष की कमान चढ जाती है ऐसे मेरे युगल आप,मेरे ह्रदय निकुंज मे विराजित हो)
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निकुंज कुंज निभृत:,रचित् सेज सुखहित:।
कालिंदी कूल शीतलै,उरऽजति निकुंज मम्।।१२।।
(आपके कुंज ,निकुंज ,निभृत निकुंज ,आपके सुखहित सजाई गई सेज एवं शीतल यमुना जी का किनारा आप सभी,मेरे ह्रदय निकुंज मे विराजित हो)
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लोकानां परै मति,विलास चिन्हौ रति।
सहितं परस्परौ निम्ञजति,उरऽजति निकुंज मम्।।१३।।
(जगत की बुद्धि से परे आपके रस विलास,एवं इनसे उत्पन्न रति चिन्हो सहित आपस मे डूबे हुए आप,मेरे ह्रदय निकुंज मे विराजित हो)
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तत्वंतत्व ममं मति,राधारमण एक: इति।
अद्य: भूत भविष्यषि,उरऽजति निकुंज मम्।।१४।।
(मेरे मन बुद्धि के अनुसार तो सभी तत्वो मे तत्व केवल एक मेरे राधारमण ही है,ऐसे मेरे राधारमण ,बीत चुके कल,आज एवं आने वाले समय भी,मेरे ह्रदय निकुंज मे विराजित हो)
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पठेति प्रीति: याचनाम्,हृदय द्रवित नित्यताम्।
सत्यं "प्यारी" वदिष्यति,उरऽजति निकुंज मम्।।१५।।
(प्यारी सच कहती है कि इस प्रीति याचना को द्रवित ह्रदय से नित्य प्रति पढने पर मेरे ह्रदय सा ही सबका ह्रदय निकुज होगा)
Saturday, 20 April 2019
प्रीति याचना ... प्यारी जू
ब्रजरज: वन्दना ... प्यारी जू
.........ब्रजरज: वन्दना....................
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सुख सम्पत्ति: रस दम्पत्ति,कामौ अजेय काम: पिडित:।
सुर नर मुनादि: पूजित:,प्रणामि शुद्ध ब्रजरज:।।१।।
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( काम के लिए अजेय होकर भी सदैव कामुक रहने वाले रस दम्पत्ति का सुख ही एकमात्र जिनका सुख है एवं जो देवता,मनुष्य और मुनिजनो की पूजनीय है,ऐसी परम पावन ब्रजरज को प्रणाम है।)
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सुमनि सार अति कोमलै,ह्रदय अनंत भाव निहित:।
अंकनि द्वौ धारित नित:,प्रणामि शुद्ध ब्रजरज:।।२।।
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(अपने हृदय मे अनेक युगल भावो को समाहित किये हुए,जो पुष्प पराग से भी अधिक कोमल है और जो अपनी गोद मे नित्य दोनो अर्थात युगल को धारण करती है,ऐसी परम पावन ब्रजरज को प्रणाम है।)
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उर भाव युगल: रोपिणि,रस बेलि तरू सिञ्चित:।
किञ्चित न दृश्यम् वंञ्चित:,प्रणामि शुद्ध ब्रजरज:।।३।।
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(हृदय भूमि मे युगल भावो को लगाने वाली,रस से इन लताओ और वृक्षो को सींचने वाली जो युगल भाव राज के किसी भी दृश्य से जरा भी वंचित नही रहती,ऐसी परम पावन ब्रजरज को प्रणाम है।)
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प्रति अंग सुअंग स्पर्शयितै,सौरभ पद कंज सुरभित:।
प्रियतम प्रिया रस लुंठित:,प्रणामि शुद्ध ब्रजरज:।।४।।
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(जो इनके प्रत्येक सुन्दर अंग का अपने विभिन्न अंगो द्वारा स्पर्श प्राप्त करती है,इनके चरण कमलो की सुगंध से सुगंधित रहती है एवं जो सदैव प्रिया प्रियतम के प्रेम रस मे डूबी रहती है,ऐसी परम पावन ब्रजरज को प्रणाम है।)
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स्वरूपं रूपं निज परिवर्तनी,हृदयगत सुरूचि भाव उत्थित:।
कालं स्थिति दिशा रचित:,प्रणामि शुद्ध ब्रजरज:।।५।।
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(जो युगल के हृदय की गहनता मे उठने वाले भाव एवं उनकी रूचि अनुसार समय,स्थिति एवं दिशा का निर्माण करते हुए अपने रूप,स्वरूप मे परिवर्तन कर लेती है,ऐसी परम पावन ब्रजरज को प्रणाम है।)
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मूलं प्रति कर्माणि सुख:,जन्मानि तेषां कैवलम् हित:।
रूपं प्रत्यक्ष दैन्यं जिवित:,प्रणामि शुद्ध ब्रजरज:।।६।।
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(जिनके प्रत्येक कर्म का मूल कारण केवल उनका सुख है,जिनका जन्म केवल उनके(युगल के) हित के लिए ही हुआ है और जो दीनता का प्रत्यक्ष जीवित स्वरूप है,ऐसी परम पावन ब्रजरज को प्रणाम है।)
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हित सेवां प्रियौ सुखै, शुभाशीष रेणु ब्रज: इच्छित:।
सम त्वं "प्यारी" समर्पित:,प्रणामि शुद्ध ब्रजरज:।।७।।
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(अपने इन प्रिय युगल की सेवा के हितार्थ इस ब्रज रेणु से शुभ आशीष की इच्छा मन मे लिए आपके समान ही इन्हे समर्पित होने के लिए यह "प्यारी" परम पावन ब्रजरज को प्रणाम करती है।)